Pages - Menu

Thursday, September 5, 2013

Decreasing importance of Kadamba beloved Radha Krishna


Krishna

गोवर्धन। जोड़ी लागे प्यारी, ज्यू चंदा और चकोर, आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर, बांसुरियां बजावे, मेरे मन का चितचोर, आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर.

कृष्ण और राधा की नगरी में कृष्ण जन्माष्टमी के बाद अब लोग राधाष्टमी मनाने के उत्साह में सरोबार हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम की निशानी कदंब के पेड़ का अस्तित्व खतरे में आ गया है। ब्रजभूमि में ही भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय कदंब वृक्ष का महत्व कम हो रहा है।

उद्यान निरीक्षक आरएस शर्मा के अनुसार, इस साल फलदार और छायादार करीब 28 हजार पौधों की बिक्री उद्यान विभाग की नर्सरियों से हुई है। इसमें कदंब के पौधों की संख्या लगभग दो सौ रही। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ब्रजभूमि में ही भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय कदंब वृक्ष का महत्व कम हो रहा है।

संपूर्ण प्रकृति को सौंदर्य प्रदान करने वाली ईश्वरीय शक्ति का उजड़ा आंगन संतों के दिलों में टीस बनकर उभरने लगा। गिरिराज तलहटी में काटों भरे वृक्षों की भरमार, गोखरू के नन्हें दिखने वाले कांटों का असहनीय दर्द, दूर दूर तक छांव को तरसते परिक्रमार्थी, छांव के अभाव में देर रात तक तपती ब्रजरज, चारों तरफ उजड़ा चमन नजर सन् 2006 से पहले कुछ यूं नजर आती गिरिराज वसुंधरा की भयानक तस्वीर भक्ति मार्ग को दर्द दे रही थी।
भक्तों के दिलों में गिरिराज तलहटी का सूना आंचल शूल की तरह चुभने लगा। सुगबुगाहट से शुरू हुआ सफर जनजागृति के रास्ते होता हुआ आंदोलन के साथ ग्रीन टिब्यूनल के दरवाजे पर पहुंचा। तलहटी को सौंदर्य प्रदान करने के लिये उठी आवाज ने तलहटी का स्वरूप बदल दिया। सैकड़ों संत और दर्जनों स्वयं सेवी संगठन जुट गये गिरिराज की धरा को द्वापरयुगीन स्वरूप लौटाने के प्रयास में। 

यूं ही नहीं छलका दर्द- वंशीवट के संत जुगल किशोर महाराज, गोवर्धन परिक्रमा संरक्षण संगठन, गिरि गोवर्धन सेवा समिति, सिद्ध सिद्धांत के आचार्य शैलेन्द्र शर्मा आदि दर्जनों संगठनों के प्रयास ने गिरिराज तलहटी का प्राकृतिक स्वरूप ही बदल दिया। सन् 2008 से तलहटी की सूनी धरा सघन वृक्षावली से लहलहाने लगी। गिरिराज शिलाओं पर लगे स्प्रिंकलर फव्वारे हरियाली के साथ शीतलता प्रदान करते नजर आ रहे हैं। कदम कदम पर लगे वृक्ष परिक्रमार्थियों को न सिर्फ शीतलता प्रदान कर रहे हैं बल्कि गिरिराज तलहटी के सौंदर्य में चार चांद लगा रहे हैं। अपने गुलशन को उजड़ता देखकर वेदों की वाणी गाने वाले होंठ आग उगलने लगे। धरना प्रदर्शन कर जन जागृति लाने का प्रयास किया। और गिरिराज तलहटी के संरक्षण का मुद्दे को लोगों का कारवां बन गया। 

भगवान के बागवां को संवारने चले इंसान-
कहने को ब्रज की धरा निराली है। लेकिन इस धरा पर हरियाली पनप नहीं पा रही। ब्रज को हरा-भरा करने को प्रयास तो बहुत हुए, लेकिन लापरवाही की वजह से सारी कवायद दम तोड़ रही है। हाल यह है कि हर साल लगाए जा रहे पौधों में करीब तीस फीसद पनपने से पहले ही सूख जाते हैं। यही कारण है कि जिले के 3340 हेक्टेयर भूभाग में महज 1.8 फीसद क्षेत्रफल ही हरा-भरा है। 

राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक, कुल भूभाग का 33 फीसद क्षेत्रफल वन आच्छादित होना चाहिए। लेकिन यह नीति कान्हा की नगरी में बेअसर है। लोगों की रुचि अपने घरों के आसपास पेड़ लगाने में भी कम हो गई है। वन विभाग के ताजा आंकड़े बताते हैं कि धर्म नगरी में वन आच्छादित भूभाग का क्षेत्रफल केवल 1.8 फीसद है। जिले में खारा पानी पनपने से पहले ही पौधों का दम घोंट रहा है। विभाग की ओर से लगाए गए पौधों की देखरेख भी नहीं हो पा रही है। 

13 साल में रोपे आठ लाख पौधे- वन विभाग के आंकड़ों की मानें तो वित्तीय वर्ष 2009-10 में करीब 2.23 लाख पौधे जिले में लगाए गए। 2010-11 में 3.80 लाख और 2011-12 में करीब 2.59 लाख पौधों का रोपण हुआ। करीब सत्तर फीसद पौधे ही जीवित बताए जा रहे हैं। 

गोवर्धन में सूख रहे सबसे ज्यादा पौधे-
गोवर्धन और उसके आसपास के इलाके में पौधों का दम सबसे ज्यादा घुट रहा है। गोवर्धन क्षेत्र का पानी भी जनपद के अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक खारा है। मांट और आसपास के इलाकों का भूजल पौधों की सेहत के लिए उपयोगी है। जिला वन अधिकारी केसी वाजपेयी के अनुसार, छाता और मथुरा में भी वनों की संख्या अपेक्षाकृत ठीक है।

जिले की जलवायु शुष्क- जिले की सीमा राजस्थान से लगती है। इसलिए वहां की जलवायु का भी प्रभाव पड़ता है। शुष्क जलवायु का असर पौधों की सेहत पर पड़ रहा है। उद्यान निरीक्षक आरएस शर्मा के अनुसार, इस साल फलदार और छायादार करीब 28 हजार पौधों की बिक्री उद्यान विभाग की नर्सरियों से हुई है। इसमें कदंब के पौधों की संख्या लगभग दो सौ रही। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ब्रजभूमि में ही भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय कदंब वृक्ष का महत्व कम हो रहा है।

Original... http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-decreasing-importance-of-kadamba-beloved-radha-krishna-10700349.html

No comments:

Post a Comment