नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। डबडबाई आंखें और होठों पर फैली मुस्कान मलामा बदरू की खुशी की गवाही दे रही थी। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजी समझ-बोल सकने वाली इस नाइजीरियाई महिला ने दुभाषिये की मदद से कहा- मैं खुश हूं कि अब मैं दोनों बेटियों को अच्छी तरह से सजा-धजा सकूंगी। मलामा की दोनों बेटियां हुसैना और हसाना बदरू के शरीर का 44 सेंटीमीटर हिस्सा जुड़ा हुआ था, जो कि एक दुर्लभ स्थिति है। ऐसे में अलग करने की सर्जरी के दौरान दोनों में से एक की जान भी जा सकती थी लेकिन दिल्ली के बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सफलतापूर्वक इन्हें अलग कर दिया गया। 14 घंटे चली इस सर्जरी में 40 विशेषज्ञ शामिल थे। भारत में विदेशी बच्चों की जटिल सर्जरी का यह पहला मामला है।
28 अगस्त 2012 को जुड़वां बच्चियों का जन्म उनके माता-पिता के लिए तकलीफ का कारण बन गया। दोनों बच्चियां पाइपोपागस ट्विन्स की श्रेणी में शामिल थीं यानी ऐसे जुड़वा जिनकी यूरिनरी, वेजाइनल ओपनिंग और एनस एक ही होते हैं। इनका शरीर पीछे की ओर से 44 सेंटीमीटर तक जुड़ा हुआ था और स्पाइनल कार्ड भी आपस में मिले हुए थे। एक प्रेस वार्ता में यह जानकारी देते हुए अस्पताल के चिकित्सकों ने कहा कि ऐसी स्थिति में उन्हें अलग करने के लिए सर्जरी किसी बम के तार को अंदाजे से काटने की तरह हो सकती थी, जिसमें गलत तार कटने का मतलब एक बच्चे की जिंदगी खत्म हो जाना था। नाइजीरिया के चिकित्सकों ने कहा कि अलग करने की सर्जरी में दोनों में से एक बच्ची की कुर्बानी देनी होगी।
अंतत: अभिभावकों ने बीएलके अस्पताल से संपर्क किया। यहां आने के बाद जांच की गई और पाया गया कि मामले की जटिलता के कारण न केवल शिशु चिकित्सा सर्जन बल्कि न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, स्पाइन सर्जरी, अनस्थीशिया और रेडियोलॉजी के भी विशेषज्ञों की जरूरत है। बच्चियों का स्पाइनल कार्ड का निचला हिस्सा जुड़ा हुआ था, साथ ही मल-मूत्र द्वार भी एक था। इसके अलावा सिकल सेल नामक आनुवंशिक बीमारी के लिए वे पॉजिटिव थीं। इसकी वजह से सर्जरी में खतरा बढ़ जाता है। अच्छी बात यह थी कि उनके मस्तिष्क, ह्रदय, फेफड़े और किडनी अलग-अलग थीं। तीन चरणों में सर्जरी प्लान की गई। 25 मई को पहले चरण में बच्चियों की त्वचा के नीचे टिश्यु एक्सपेंडर लगाया गया, ताकि सर्जरी के बाद खुले हुए घावों को त्वचा से ढका जा सके। 12 अगस्त को दूसरे चरण में जुड़वा बच्चों को अलग किया गया। सर्जरी के बाद उन्हें आईसीयू में रखा गया ताकि किसी तरह के संक्रमण से बचाया जा सके। तीसरा चरण अभी बाकी है, जिसके तहत बच्चियों के रेक्टम का द्वार खोला जाएगा।
मां-पिता को दी जबान : नाइजीरिया के उत्तरी हिस्से से आए दंपत्ति को केवल एक ही भाषा आती थी- हौसा। अंग्रेजी बोलने और समझने में इन्हें खासी दिक्कत थी। चिकित्सक चाहते थे कि उन्हें मामले की जटिलता ठीक से बताकर ही इलाज शुरू किया जाए। संयोग से अपने पिता के इलाज के लिए नाइजीरिया से आए एक युवक को यह भाषा आती थी। फरहाद नामक युवक ने पूरे इलाज के दौरान चिकित्सकों और अभिभावकों के बीच सेतु की तरह काम किया।
दुनिया में यह अपनी तरह का चौथा मामला है, जिसमें इस तरह से जुड़वा बच्चों की सफल सर्जरी की जा सकी। बच्चियों की नसें आपस में इस तरह से गुथी हुई थीं कि उन्हें अलग करते वक्त यह समझना कठिन था कि किसमें कौन सी नस जा रही है। इसके लिए हमने न्यूरो-मॉनीटरिंग तकनीक अपनाई। यानी न्यूरो इलेक्ट्रोड से एक-एक नस को स्पर्श किया, इससे जिस बच्ची का पैर हिलता, हम समझ जाते कि यह नस उसके शरीर की है। 14 घंटे चली सर्जरी में टीम वर्क के कारण बेहतरीन परिणाम मिल सके।
-डॉ प्रवीण खिलनानी, विभागाध्यक्ष, पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर, बीएलके अस्पताल
Original.. http://www.jagran.com/news/national-nigerian-conjoined-twins-get-new-lease-of-life-in-india-10700271.html
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