A Hindi News Portal!

Monday, August 12, 2013

Muslim Familyes Saved Earnest of Hindu Religion


tulsi jayanti


कुमार अजय, वाराणसी। कोई दो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी चित्रमय रामायण की मूल प्रति ढूंढ़ ली गई है। अपने समय काल में किन्ही कारणों से भक्तों के हाथ आने से रह गई यह चित्रमय रामायण अखाड़ा तुलसी दास के प्रयासों से अब इंद्रधनुषी रंगों से सजी पुस्तक के रूप में आंखों के सामने है। मंगलवार को तुलसी जयंती पर आयोजित समारोह में यह रचना लोक मानस को समर्पित की जाएगी।

वयोवृद्ध मानसप्रेमियों से इस चित्रमय रामायण के अस्तित्व से अवगत होने के बाद से ही संकट मोचन मंदिर के दिवंगत महंत वीरभद्र मिश्र ने खोजबीन की जिम्मेदारी अपने कनिष्ठ पुत्र डॉ. विजय नाथ मिश्र को सौंपी थी। वर्षो के अथक अन्वेषण के बाद डॉ. मिश्र और उनके मित्र डॉ. उदय शंकर दुबे ने आखिर इसे सोनारपुरा क्षेत्र के एक गृहस्थ के यहां से ढूंढ़ निकाला। 

बनारस के किसी अनाम चित्रकार ने ही किया अंकन :
लगभग दो शताब्दियों से पुराने अलबमों में सहेज कर रखी गई मिनीएचर शैली की इन अनमोल तस्वीरों में बबूल के गोंद के साथ प्रयुक्त पेवड़ी, गेरू, रामरज आदि प्राकृतिक रंगों की चमक थोड़ी मद्धम जरूर पड़ी है, मगर आकृतियों की स्पष्टता पर इससे अंतर नहीं पड़ा है। अलबमों में रामकथा के प्रसंग क्रमवार भी नहीं हैं, किंतु पूरी रामकथा इनमें संग्रहीत हैं। पात्रों के परिधान व आभूषणों का चित्रांकन इन चित्रों के समय काल की गणना में तो सहायक हैं ही, यह भी तय करने में मदद देते हैं कि काशी के ही किसी अनाम चित्रकार ने यह सजीव राम कथा रची है। मसलन फुलवारी में बैठी जानकी जी की नासिका को अलंकृत करती नथ जहां यह बताती है कि तस्वीरें सत्रहवीं-अट्ठारहवीें सदी के दौर की हैं (डॉ. दुबे के अनुसार इसके पूर्व काशी के आभूषणों की श्रृंखला में नथ शामिल नहीं थी)। वहीं श्री राम-लक्ष्मण सहित अन्य पात्रों के पहिरावे में धोती की जगह घुटनों तक के कच्छे का प्रयोग यह स्पष्ट करता है कि चित्रों की पृष्ठ भूमि में बनारस की जीवन शैली ही मुख्य बिंब रही है। काशी की प्राचीन रामलीलाओं में आज भी इसी शैली के परिधान चलन में हैं।

Original Found Here... http://www.jagran.com/news/national-muslim-familyes-saved-earnest-of-hindu-religion-10643336.html

0 comments:

Hindi News