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Tuesday, September 3, 2013

Hard Time Over For RBI Governor D Subbarao


RBI governor

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर पद से आज मुक्त हो रहे दुव्वुरी सुब्बाराव का सफल कांटों भरा रहा। कौन गवर्नर ऐसा चाहे कि उसके पद संभालते ही देश नहीं पुरी दुनिया मंदी की चपेट में आ जाए। 

सुब्बाराव के आरबीआई का गवर्नर बनने के 15 दिनों के अंदर ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक लीमैन ब्रदर्स ने दिवालिया होने आवेदन दे दिया। इससे दुनिया भर की बैंकिंग प्रणाली बड़े संकट में फंस गई। इसके बाद वैश्विक आर्थिक मंदी की गिरफ्त में आ गई थी। लोगों का भरोसा खत्म होने लगा। ये सुब्बाराव की ही नीतियां थी कि भारत आर्थिक मंदी की खरोंच से बच गया।
 
रिजर्व बैंक में सुब्बाराव के उत्तराधिकारी रघुराम गोविंद राजन को इन समस्याओं से निपटना है। राजन फिलहाल वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अर्थशास्त्री रह चुके रहे हैं।
सुब्बाराव को मुश्किल वक्त पर कड़े कदम उठाने पड़े जिसकी वजह से वह कभी सरकार तो कभी उद्योग जगत की आलोचनाओं का शिकार बने। उन्होंने अपने आलोचकों को अपनी नीतियों के जरिये करारा जवाब भी दिया। सुब्बाराव ने अपने आखिरी भाषण में अपने कार्यकाल का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार किया, आप दिलचस्प दौर में रहें। मैं इस मामले में शायद ही शिकायत कर सकता हूं। मैं पांच साल पहले रिजर्व बैंक में आया था जबकि मंदी आ रही थी और मैं अपना कार्यकाल ऐसे समय में पूरा कर रहा हूं जबकि मंदी से निकासी हो रही है और पिछले पांच साल में एक हफ्ते भी संकट से मुक्ति नहीं मिली। 

आज वैश्रि्वक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों में रुपये की विनिमय दर न्यूनतम स्तर पर है, आर्थिक वृद्धि घट रही है और मुद्रास्फीति का लंबा दौर बना हुआ है। सुब्बाराव को सबसे अधिक उनकी उन सख्त मौद्रिक पहलों के लिए याद रखा जाएगा जो उन्होंने पिछले डेढ़ साल में उठाए जबकि एक ओर मुद्रास्फीति बढ़ रही थी दूसरी ओर आर्थिक वृद्धि घट रही थी। उनके नेतृत्व में आरबीआई ने सरकार के धर्य की परीक्षा लेते हुए ब्याज दरें मार्च 2010 से अक्तूबर 2011 के बीच नीतिगत दरें 13 बार बढ़ाईं। आरबीआई के सख्त रवैये के कारण थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति जो दहाई अंक (2010-11) से घटकर अब करीब पांच प्रतिशत पर आ गई और केंद्रीय मुद्रास्फीति (विनिर्मित वस्तुओं से संबंधित) करीब दो प्रतिशत थी। अपनी नीतिगत पहलों का बचाव करते हुए 22वें आरबीआई गवर्नर ने कहा कि कई बार वृद्धि घटी है लेकिन इसका सारा ठीकरा सख्त मौद्रिक नीति के माथे पर फोड़ना ठीक नहीं होगा और सबसे अहम बात है कि अगर इसे नीतिगत सीख के रप में मान लेना गुमराह करने वाली बात होगी। 

सुब्बाराव ने अपने आखिरी व्याख्यान में कहा था कि निश्चित तौर पर रुपया की गिरावट की रफ्तार और इसका समय अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बांड बिक्त्री के फैसले से प्रभावित है लेकिन हम यदि हम यह स्वीकार नहीं करते कि मूल कारण घरेलू ढांचागत तत्व हैं तो हम इसकी पहचान और निवारण दोनों में भटक जाएंगे। साथ ही चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खनन और विनिर्माण क्षेत्र के संकुचन के कारण वृद्धि दर घटकर 4.4 प्रतिशत पर आ गई।

एचडीएफसी बैंक के चीफ आदित्य पुरी ने कहा कि मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं। वह मुश्किल समय से गुजरे हैं। मेरा मानना है कि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन प्रतीप चौधरी के मुताबिक, उनके कार्यकाल के बारे में एक चीज के बारे में पूरी तरह बात नहीं की गई कि उन्होंने सीआरआर और एसएलआर को 4 पसर्ेंटेज पॉइंट्स घटाया। मुझे लगता है कि 5 साल के कार्यकाल में बड़ा कदम है।

Original.. http://www.jagran.com/news/business-hard-time-over-for-rbi-governor-d-subbarao-10697555.html

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